ब्लेम गेम की मानसिकता
"हर स्तर का व्यक्ति खुद को बेहतर मानकर नीचे वालों को दोष देता है, लेकिन खुद के दोषों को नज़रअंदाज़ करता है।"
इसे विस्तार से समझते हैं:
🌀 ब्लेम गेम की मानसिकता
हमारे समाज में अक्सर यह देखने को मिलता है कि:
- वेजेटेरियन कहते हैं: "नॉनवेज खाना पाप है।"
- नॉनवेज खाने वाले कहते हैं: "कम से कम हम शराब तो नहीं पीते।"
- दारू पीने वाले कहते हैं: "हम गांजा थोड़ी पीते हैं!"
- गांजा पीने वाला कहता है: "कम से कम हम चरस या ड्रग्स नहीं लेते!"
यानी हर कोई अपने से "थोड़ा खराब" दिखने वाले को नीचे दिखा देता है — ताकि अपने दोषों को正 ठहराया जा सके।
🧠 ऐसा क्यों होता है?
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आत्म-सुरक्षा (Self-defense):
लोग दूसरों को गलत ठहराकर खुद को मानसिक रूप से सही महसूस करना चाहते हैं। -
तुलना में संतोष (Relative Justification):
हम कहते हैं: "कम से कम मैं इतना बुरा नहीं हूं जितना वह है।"
यह सोच हमें सुधारने से रोकती है। -
सामाजिक श्रेष्ठता का भ्रम:
जब हम दूसरों को "गलत" साबित करते हैं, तो हमें लगता है कि हम "सही" हैं।
🌱 समाधान क्या है?
✅ आत्म-निरीक्षण (Self-reflection)
हर व्यक्ति को पहले खुद से पूछना चाहिए:
"क्या मैं सच में सही हूं, या बस किसी और से बेहतर दिख रहा हूं?"
✅ सुधार की जिम्मेदारी खुद लें
दूसरों को सुधारने से पहले खुद को सुधारे।
बदलाव नीचे से नहीं, अंदर से आता है।
✅ दूसरों के फैसलों को समझें, जज न करें
हर किसी की ज़िंदगी की परिस्थितियाँ अलग होती हैं।
आदतें बदलने का तरीका "दबाव" नहीं, प्रेरणा और समझ है।
🎯 निष्कर्ष (Takeaway):
"दूसरों को दोष देने से बेहतर है खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान देना।"
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